Monday 1 August 2016

घाटी में शांति स्थापना

अन्धकार भरी रातों को
अब तो तुम ढल जाने दो,
इस धरा से आतंकवाद को
जड़ से मिट जाने दो

सहकर्मियों को भी अब तो
तुम दंड मिल जाने दो,
चौराहों पर इन आदमखोरों को
फांसी लग जाने दो

घाटी को छलनी करने वालो तक
तुम एक सन्देश तो जाने दो,
मारा जायेगा हर आतंकी
वो अफजल हो या बानी हो

एक बार सेना को अब
अंतिम अभियान चलाने दो,
घाटी के कोने कोने से
आतंकवाद मिट जाने दो

मानवाधिकार की बातें करके जो
आतंकवाद को बचाते हैं,
एक बार उन अधिकारों को भी
तुम ठोकर लग जाने दो

फिर से केसर घाटी में
शांति स्थापित हो जाने दो,
इस धरा से आतंकवाद को
जड़ से मिट जाने दो

स्वर्ण मंदिर वाला मंजर एक बार
घाटी में दिख जाने दो,
इंदिरा गांधी जी की यादों को
पुनः स्मरण हो जाने दो

लोह फैसले देश हित में
सत्ता को कर जाने दो,
भारत भू की पावन घाटी में
शांति स्थापित हो जाने दो

अन्धकार भरी रातों को
अब तो तुम ढल जाने दो,
इस धरा से आतंकवाद को
जड़ से मिट जाने दो।।।

Wednesday 15 June 2016

जाट आंदोलन

भूख लगी है आरक्षण की
ये रोटी से कहाँ बुझेगी ।
जब तक लाखों नही मरेंगे
इनकी प्यास कहाँ बुझेगी।

आरक्षण के नाम पर ये तो
गुंडागर्दी दिखा रहे हैं ।
दादरी जैसे काण्ड को ये
आरक्षण से बढ़ा रहे हैं ।

फूंक दिए है वाहन जिसने
लूट ली थी दुकानें ।
कहने को तो ये भी हैं
भारत माँ की सन्तानें ।

खुद को सक्षम बनाने खातिर
ये औरों को गिरा रहे हैं ।
क्या इज्जत ये करेंगे देश की जो
सुरक्षा बलों पर भी पत्थर उठा रहे हैं ।

आरक्षण की घूंटी
नेता इनको पिला रहे हैं ।
और देश की स्थिरता को
ये आंदोलन से हिला रहे हैं ।

                                                धन्यवाद
                                             ( तरुण त्यागी)

Wednesday 4 May 2016

नारी

न ही कोई वस्तु हूँ मैं,
न ही कोई खिलौना हूँ
नारी हूँ मै आज वह
इस पापी समाज से हारी हूँ
जहाँ कितनी ही निर्भया
अखबारों में दब जाती हैं
उन घुटी हुई अवाजों की मै
आज बनी किलकारी हूँ
रावण तो तब भी था जिसने
माँ सीता हर डाली थी
पर बिन स्वीकृति के उसने
स्पर्श न करने की ठानी थी
आज के रावण ऐसे है जो
नारी को हर लाते हैं
और भूखे भेड़ियों कि भांति
उनको छलनी कर जाते हैं
कानून  व्यवस्था  पर भी मैं
इतनी शर्मिंदा हो जाती हूँ
की भेड़िये खुलेआम घूमते
मै अस्पताल में कराहती हूँ
जो भूल कर रहे मुझे समझने में
स्मरण उन्हें  मैं ये कराती हूँ
कि सती भी हूँ सावित्री भी
और वक्त पड़े तो काली हूँ।

                                                 धन्यवाद ।
                                              ( तरुण त्यागी)

Wednesday 23 March 2016

आतंकवाद

भारत माँ पर दुश्मन के घातक अनेक प्रहार हुए।
पर फिर भी सत्ता के सारे मौन सभी दरबार हुए।
भारत माँ की संताने अब लहू में उबाल भरें।
इन आतंक के दाताओं का निर्दयता से संघार करे ।

आतंक को कहि विजय का गौरव ना मिल जाये
ऐसी मृत्यु दो इनको की इनकी बुनियादें भी हिल जाये।

जिस अफज़ल को फांसी देकर अदालत ने इन्साफ किया
उसको हमदर्दी देकर कुछ चरों ने गद्दारी का प्रहार किया।

इन आतंक के भेड़ियों से जिनको हमदर्दी होती है
उनकी करतूतों पर शर्मिंदा भारत माता होती है।

जो वीर सिपाही भारत माँ की रक्षा में मिट जाते हैं ।
ये गद्दार उनकी शाहदत को शर्मिंदा कर जाते हैं।।
  
                                   धन्यवाद (तरुण त्यागी)