Thursday 15 November 2018

हुंकार

हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी

खोई गरिमा पाने को
सबसे सक्षम बन जाने को
तप कर सोना बन जाने को
सोने की चिड़िया कहलाने को
फिर विश्वगुरु बन जाने को
सबसे महान कहलाने को

दिन रात तपाया खुद को है
दिन रात जलाया खुद को है
महनत से सींचा हर जन ने
दिन रात चलाया खुद को है

अर्थव्यवस्था में इसकी
सबसे ऊंची छलांग पड़ी
सैन्य और शौर्य में इसने
सीखने वालों की प्यास भरी
और बात करें तकनीकी तो
नभ में सफल हुंकार भरी
विकास और कौशल में इसने
शेरों जैसी दहाड़ भरी
और संयुक्तता सिखलाने को
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की नींव धरी

हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी।।

            
                                 धन्यवाद
                              "तरुण त्यागी"

Saturday 21 July 2018

फरियाद

कुछ अलग अंदाज था
जो वक्त की न की कदर
आज बैठा हूँ अकेले
खाये ठोकर इस कदर

सर पकड़कर रो तड़पकर
बैठा हूँ मैं अब इसकदर
जैसे मांझी को न आये
साहिल-ऐ-कश्ती नज़र

अब एक फरियाद मेरी
सुनले मालिक आखरी
दे मुझे तू हौसला बस
यही फरियाद है आखरी

तेरा साया साथ हो तो
वो मुकाम मिल जाएगा
जग में कर सके न जिसकी
कोई भी बराबरी

साथ हो कोई मेरे
अब न है इसकी कामना
मेरे मालिक तू ही अब
बस मेरा हाथ थामना

तेरे साये में रहूँ
जब तक  भी देह में प्राण हैं
तेरी रहमतों से तो मालिक
पाषाण में भी प्राण हैं

है वचन तुझसे मेरा
हर कर्म करूँगा स्तय से
न भी हो कोई साथ मेरे
तब भी लड़ूंगा असत्य से

करूँगा अब हर कर्म को
मैं सच्चे निष्ठा भाव से
डिगेंगे न अब पग मेरे
सद्भाव से सद्मार्ग से।।
 
                                                   धन्यवाद
                                                ' तरुण त्यागी '

Thursday 15 March 2018

स्वतंत्रता दिवस

सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं , आज इस पावन दिवस पर मेरी कलम की कुछ पंक्तिया आपके सामने रखता हूँ , और आशा करता हूँ कि इन पंक्तियों के माध्यम से जन मन मे जो बीज मैं बोना चाहता हूं उसका वृक्ष मुझे आने वाले समय देखने को मिले ।

पंक्तिया प्रारम्भ करता हूँ ।
     

हम आज़ाद हैं आज़ादी छिनने नहीं देंगे
तिरंगे को कभी अपने हम झुकने नही देंगे
आज़ादी दिलाई जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर
उनकी कुर्बानी की दास्तान इतिहास से मिटने नहीं देंगे

वादा करो कि देश का मान बनाये रखोगे
संस्कार और संस्कृति की लौ जलाकर रखोगे
मिले मौका कभी वतन पर कुर्बान होने का
कफ़न मेरा हो तिरंगा बस यही अरमान रखोगे।।
    
                                                              धन्यवाद
                                                         (तरुण त्यागी)

स्वछ धरा

सभी को प्रणाम ।

बहुत समय पश्च्यात आपके समक्ष एक कविता के साथ उपस्थित हुआ हूँ , मन से पढियेगा । आपकी प्रतिक्रिया चाहूंगा अगर मेरे कहे गए वाक्य स्तय लगे । कविता का शीर्षक है , "स्वछ धरा" ।

                      "स्वछ धरा"

धरती बोली अम्बर बोला
बस बहुत हुआ अब बहुत हुआ
कण कण इस पावन माटी का
ह्रदय से अब है चीख उठा,
क्या खूब प्रदर्शित किया मुझे
वर्षों से दूषित किया मुझे ।

गंगा बोली यमुना बोली
बस बहुत हुआ अब बहुत हुआ
वैसे तो माता कहा हमे
वर्षों से दूषित किया हमें ।

वायु , अग्नि , जल , पृथ्वी को
देवों का दर्जा दिया गया
पूछा है पंचभूतों ने आज
हमको क्यों दूषित किया गया

जन जन मेरे भारत का क्या
अब इतना स्वार्थी हो गया
खुद को तो स्वछ किया नित रोज़
वातावरण को भूल गया।

सह्रदय नमन है उन्हें मेरा
जो मां को स्वछ बनाते हैं
हम जैसे ही मानुस होकर भी
घर घर कचरा उठाते हैं।

न शर्म उन्हें यह करने में
कचरे के ढेर में मरने में
चिंता है उन्हें हर क्षण यही
माँ न रह जाये कचरे में ।

विनती  बस मेरी इतनी है
की मातृभूमि ये अपनी है
दाग न लगे धरा पे मेरी
सबको यही कोशिश करनी है।।

                                                            धन्यवाद
                                                         "तरुण त्यागी"