हे त्रिलोकि पालक , जटाधारी
हे कैलाशी हे भुजंगधारी
डम डम के शोर से तेरे
विपदा जाएं सभी हारी
हे शम्भू, हे शंकर
हे महारूद्र भयँकर
हे भोले , भूतेश्वर
नीलकंठ , हे विश्वेश्वर
तेरी माया , तेरी छाया
तुझमें ही ब्रह्मांड समाया
तू ही करता तू ही भरता
भक्तों के दुख तू ही हरता
तेरी महिमा जिसपे पड़े
मृत्यु से वो हँसके लड़े
तेरी कृपा छाया में तो
काल भी हैं दूर खड़े
हे पिनाकी , शूलपाणी
खटवांगी , हे मृगपाणी
तुम ही रुद्र हो तुम ही भूपति
तुम ही दिगम्बर , अष्टमूर्ति
हे पशुपति , हे महादेव
हे सहस्त्रपाद , हे व्योमकेश
अनन्त तेरे नाम बाबा
अनन्त ही हैं तेरे वेश
जो जन भक्ति में तेरी
भूले हैं संसार को
उनपे रहती दृष्टि तेरी
आठों प्रहर को
जो भी तेरे द्वार जाए
देव , मनुष्य या असुर
भेद नही तुमने किया
दिया सभी को इछावर
हे बाबा ये दास तेरा
एक विनती कर रहा
तेरे चरणों मे रहूँ बस
ध्यान यही धर रहा
इतनी शक्ति देना बाबा
लड़ सकूं अन्याय से
और ॐ की छाया तले
कर भी सकूं न्याय मैं ।।
© तरुण त्यागी