न ही कोई वस्तु हूँ मैं,
न ही कोई खिलौना हूँ
नारी हूँ मै आज वह
इस पापी समाज से हारी हूँ
जहाँ कितनी ही निर्भया
अखबारों में दब जाती हैं
उन घुटी हुई अवाजों की मै
आज बनी किलकारी हूँ
रावण तो तब भी था जिसने
माँ सीता हर डाली थी
पर बिन स्वीकृति के उसने
स्पर्श न करने की ठानी थी
आज के रावण ऐसे है जो
नारी को हर लाते हैं
और भूखे भेड़ियों कि भांति
उनको छलनी कर जाते हैं
कानून व्यवस्था पर भी मैं
इतनी शर्मिंदा हो जाती हूँ
की भेड़िये खुलेआम घूमते
मै अस्पताल में कराहती हूँ
जो भूल कर रहे मुझे समझने में
स्मरण उन्हें मैं ये कराती हूँ
कि सती भी हूँ सावित्री भी
और वक्त पड़े तो काली हूँ।
धन्यवाद ।
( तरुण त्यागी)