Thursday 15 November 2018

हुंकार

हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी

खोई गरिमा पाने को
सबसे सक्षम बन जाने को
तप कर सोना बन जाने को
सोने की चिड़िया कहलाने को
फिर विश्वगुरु बन जाने को
सबसे महान कहलाने को

दिन रात तपाया खुद को है
दिन रात जलाया खुद को है
महनत से सींचा हर जन ने
दिन रात चलाया खुद को है

अर्थव्यवस्था में इसकी
सबसे ऊंची छलांग पड़ी
सैन्य और शौर्य में इसने
सीखने वालों की प्यास भरी
और बात करें तकनीकी तो
नभ में सफल हुंकार भरी
विकास और कौशल में इसने
शेरों जैसी दहाड़ भरी
और संयुक्तता सिखलाने को
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की नींव धरी

हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी।।

            
                                 धन्यवाद
                              "तरुण त्यागी"