हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी
खोई गरिमा पाने को
सबसे सक्षम बन जाने को
तप कर सोना बन जाने को
सोने की चिड़िया कहलाने को
फिर विश्वगुरु बन जाने को
सबसे महान कहलाने को
दिन रात तपाया खुद को है
दिन रात जलाया खुद को है
महनत से सींचा हर जन ने
दिन रात चलाया खुद को है
अर्थव्यवस्था में इसकी
सबसे ऊंची छलांग पड़ी
सैन्य और शौर्य में इसने
सीखने वालों की प्यास भरी
और बात करें तकनीकी तो
नभ में सफल हुंकार भरी
विकास और कौशल में इसने
शेरों जैसी दहाड़ भरी
और संयुक्तता सिखलाने को
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की नींव धरी
हुंकार रहा है भूतल पर
हुंकार रहा है जल में भी
हुंकार रहा हर दिशा क्षितिज में
हुंकार रहा है नभ में भी।।
धन्यवाद
"तरुण त्यागी"