Saturday 18 September 2021

जो मिटा दिए इतिहासों से

जो मिटा दिए इतिहासों से अब उनका ही गुणगान लिखूँगा
मुगलों की वाह वाही पर मैं राणा की तलवार लिखूँगा

पहले किस्से से लेकर मैं अब तक के आघात लिखूँगा
हर आघात के प्रतिउत्तर में चेतक की भी टाप लिखूँगा

शुरू हुआ था किस्सा यह जब ड्रायस भारत में आया था
देख पुरु राष्ट्र की सम्पत्ति  वह मन ही मन में हर्षाया था

सोचा फारस का परचम वह भारत पर भी लहरा देगा
पर भूल गया था पुरु राज यहाँ से खाली हाथ ही लौटा देगा

बढा सिलसिला कुछ आगे तो सिकन्दर की भी चाह बढ़ी
लाकर उसने भारत की सीमा पर करदी अपनी फौज खड़ी

लेकिन था अंजान वह भी क्या वीर यहाँ की मिट्टी में हैं
लड़कर महाराज पुरुषोत्तम से उसके टूट गए थे सारे सपने

लौटा खाली हाथ सिकन्दर पर सेल्युकस को छोड़ गया
और तभी एक ब्राह्मण शिक्षक भारत का भाग्य मोड़ गया

कुछ घात हुए बाहर से तो कुछ दंश हमारे अपने थे
अखण्ड राष्ट्र  के धनानंद ने जब तोड़े सारे सपने थे

और तभी एक गुरु शिष्य की अग्नि परीक्षा शुरू हुई
बालक चन्द्रगुप्त की तब तक्षशिला में शिक्षा शुरू हुई

कर अभ्यास निरन्तर वह जब योद्धा बनकर के आया
और गुरु के एक आदेश पर उसने पूरा नन्द वंश ढाया

अब बारी सेल्युकस की थी जो फन फैलाए बैठा था
लिए हुए सेना को अपनी भारत को ताकता रहता था

करता था आघात निरन्तर पर सफल नहीं वह हो पाया
चन्द्रगुप्त ने तब उसको भी खाली हाथ ही लौटाया

फिर एक दिवस आवाज दिल्ली को गौरी की सुनाई पड़ती है
चढ़ी हुई जब भौं उसकी भारत की तरफ अकड़ती हैं

देख यह सब फिर फौलादी पृथ्वीराज भड़कता है
शत्रु के खेमे में तब बस चौहान सुनाई पड़ता है

किया युद्ध जब भी गौरी ने मुँह की उसने खाई थी
छोड़ दिया जीवित हर बारी यह चौहान की करुणाई थी

कोई विषधर स्वयं कभी विष का त्याग न करता है
पाकर अवसर लाभ हेतु वह अपना विष उगलता है

किया छल से कैद चौहान को और नेत्रों पर आघात किया
लेकर गर्म छड़ों से उसने दोनों आँखों को भेद दिया

किया नेत्रहीन सिंह को पर हिम्मत नहीं तोड़ पाया
लिए नेत्र सिंह के पर उसकी विद्या नहीं हड़प पाया

नेत्रहीन होकर भी चौहान ने गौरी को यम तक पहुँचाया
और स्वयं ही स्वतन्त्र मृत्यु को अपने कण्ठ से लगाया

हुआ जब जब आघात राष्ट्र पर एक योद्धा आगे आता है
चौहान की ही भाँति वह इतिहास अमर कर जाता है

जब अकबर ने कब्जा किया देश पर तब मेवाड़ी मिट्टी खौल उठी
और मुग़लों को अकड़कर जय जय महाराणा बोल उठी 

देख महाराणा को स्वप्न में भी अकबर की छाती फट जाती थी
और स्वप्न ही स्वप्न देखते उसे लघु शंका हो जाती थी 

एक दिवस राणा के सम्मुख बहलोल नामक तीर किया
उस बहलोल खान को राणा ने घोड़े सहित ही चीर दिया

पर इतिहास गुलामी में सब तोड़ मरोड़ कर पेश किया
अकबर हुआ महान और यह देश राणा को भूल गया 

बस इसी क्रोध में इतिहासों से जो हटा दिया वो लिखूँगा
मुगलों की वाह वाही पर मैं राणा की तलवार लिखूँगा

हुआ नहीं है अंत अभी बस गिनती तुम करते जाना 
अब आता हूँ वीर शिवा पर अभी पूर्ण हुए हैं महाराणा

थी चित्कारें चहुँ ओर और मंदिर तोड़े जाते थे
घर से निकालकर के सबके धर्मांतरण कराए जाते थे

था आदेश यह आलमगीर का या तो कर या घर दोगे
और कुछ भी न दे पाए तो फिर अपना धर्म बदल दोगे

तभी घनेरे तम के आगे एक सूर्य निकलकर के आए
दक्षिण की पहाड़ी पर से तब शिवा सिंह से गुर्राए

किया घात शत्रु पर और चालीस गढ़ जीत लाए
ग्रसित हुई प्रजाजन को वे अँधेरे से बाहर लाए

बाबर हुमायु अकबर शाहजहाँ ने स्वप्न एक ही सजाया
हो पूरा भारत अपना पर भला कौन पूर्ण यह कर पाया

औरंगज़ेब को भी वीर शिवा ने ऐसा सदमा पहुँचाया
किया मराठा वृक्ष खड़ा जिसने मुग़लों को ढहाया 

किन्तु अभी भारत को कुछ और चोट झेलनी बाकी थी
मुग़लों की पराजय के बाद अब अंग्रेजों की बारी थी

आपस की कटुता में राजा सारे नाते तोड़ गए थे
और स्वयं को अंग्रेजों के हाथों ही छोड़ गए थे

किया राज फिर अंग्रेजों ने भी खूब क्रूरता बरसाई
किन्तु यही समय था जब अनेकों ने वीरता दिखलाई

राजाओं के संग में तब रानी झाँसी ने तलवार उठाई
रानी के हर एक प्रहार से अंग्रेजों ने मुँह की खाई

समय बीतता रहा किन्तु अभी मुक्ति दूर बहुत थी
देते सभी साथ झांसी का तो उतनी भी दूर नहीं थी

बदला समय हुआ आधुनिक काल अभी शुरू था
जकड़ा रहा बेड़ियों में ही जो कभी विश्व गुरु था

किन्तु भूलना नहीं यह भूमि उपजाऊ है वीरों की
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु जैसे शूर वीरों की

चल उठा तूफान अब और लगा वक्त बदलने
नेताजी की रणनीति से तख्त लगे थे हिलने

किन्तु जब जब चरखे का गुणगान सुनाया जाता है
आज़ाद हिंद फौज पर मानो प्रश्न चिह्न लगाया जाता है

बस इसी क्रोध में इतिहासों से जो हटा दिया वो लिखूँगा
जो दे न सके सम्मान कभी वो सम्मान आज मैं लिखूँगा।।

© तरुण त्यागी