मानो आज सबके ऊपर यमदूतों के पहरे हैं
अभी तक हमने किये आघात थे पंचभूतों पर
पर अनभिज्ञ थे कि प्रकृति के प्रतिकार गहरे हैं
अभी भी मानलो सत्य करो बदलाव जीने का
सँजोलो प्रकृति के घटकों को करो संचार जीवन का
जो न सम्भले अब भी इन सब से सीखकर कोई
तो भले खोजलो मंगल ही मिलेगा अंश मात्र जीवन का
कहीं वन में अनल है और कहीं भूचाल है जल में
मिटादि कितनी ही सम्पदा बस एक ही पल में
एक महामारी से तो हम अभी तक लड़ नहीं पाए
नई हो रही समस्याएं खड़ी हर क्षण हर पल में