Friday 29 May 2020

मायूस चेहरे

सभी मायूस हैं और सभी व्यथित से चेहरे हैं
मानो आज सबके ऊपर यमदूतों के पहरे हैं
अभी तक हमने किये आघात थे पंचभूतों पर
पर अनभिज्ञ थे कि प्रकृति के प्रतिकार गहरे हैं

अभी भी मानलो सत्य करो बदलाव जीने का
सँजोलो प्रकृति के घटकों को करो संचार जीवन का
जो न सम्भले अब भी इन सब से सीखकर कोई
तो भले खोजलो मंगल ही मिलेगा अंश मात्र जीवन का

कहीं वन में अनल है और कहीं भूचाल है जल में
मिटादि कितनी ही सम्पदा बस एक ही पल में
एक महामारी से तो हम अभी तक लड़ नहीं पाए
नई हो रही समस्याएं खड़ी हर क्षण हर पल में


Tuesday 19 May 2020

पृथ्वीराज चौहान

हिंसा का खेल हम कभी खेला नहीं करते थे
गौरी जैसे शत्रु को भी जीवित छोड़ दिया करते थे
100 भूलें तो क्षमा कृष्ण ने शिशुपाल की थी 
और 17 बार चौहान ने गौरी को प्राणों की भिक्षा दी थी

पर इतिहास साक्षी है कभी छल से कौन बच पाया है
यहां वीरता पर हर बारी अपनों ने घात लगाया है
फौड चौहान की आंखें गौरी बड़ा हर्षाया था
पर चौहान की हिम्मत को वो अब तक तोड़ न पाया था

थे धनुरश्रेष्ठ चौहान यह किसी से कहां छिपा था
गौरी ने अपनी मृत्यु को आमन्त्रित स्वयं किया था
ज्यों ही गौरी ने बोला करतब दिखाओ चौहान
शब्द भेदी बाण से चौहान ने भेद दियो सुलतान

Saturday 16 May 2020

टिक टॉक के बीमार

कोई सोलह वर्ष की आयु में कुछ सपने सजाये बैठे हैं
फौजी बनकर सरहद पर जाने की आस लगाये बैठे हैं
जी तोड़ कोशिश महनत करके वे लोहे से तैयार हैं
वहीं एक और कुछ नौजवान  टिक टॉक से बीमार हैं

कोरोना से तो लड़ ही लेंगे इसमें कोई भेद नहीं
पर नस्लों को डूबे देखूं तो कैसे कहदूँ मुझे खेद नहीं
खेद भी है और डर भी भीतर के अब भी जो ये ना जागे
तो इनका भविष्य बनाने को क्यों कोई इनके पीछे भागे

जन नायक कहते हैं हमको आत्मनिर्भर बनना होगा
पर मैं  कहता हूं पहले राष्ट्र को समझदार बनना होगा
कोई आकर सही गलत का भेद हमें क्यों बतलाये
क्यों न स्वयं नव पीढ़ी भारत को उचित मार्ग पर ले जाये

कला और कौशल दोनो का मैं भी करता सम्मान हूँ
पर टिक टॉक वाली कौम से मैं थोड़ा हैरान हूँ
है लग्न तुममे गाने की या अभिनय का है कौशल
तो टिक टॉक से बाहर आकर करो अपना उद्देश्य सफल

Saturday 9 May 2020

प्राकृतिक विध्वंस

वर्षों से जो था हो न सका
वह सब सम्भव हो पाया है
खुद को संरक्षित करने को 
प्रकृति ने विध्वंस मचाया है

थे चीख उठे धरती - अम्बर
थे चीख उठे भूतल - सागर
जो मलिन हुए थे वर्षों तक 
हैं पुनः खिले नव जीवन पाकर

यह भी हम सब न भूलें 
की आज समय जो आया है
कितना घातक होता परिणाम 
प्रकृति ने हमें बताया है

ब्रम्हा ने सृष्टि रचना की
और दिया व्याप्त भोजन साधन
फिर मानुस भूख मिटाने को
क्यों करता जीवों का भक्षण

जब जब भी मनुष्य जाति ने
खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखलाया है
प्रकृति ने घमण्ड मिटाने को 
तब तब विध्वंश मचाया है

यह आज विपद जो आयी है
चहुँ और शांति सी छाई है
इस विपदा से लड़ते लड़ते 
लाखों ने जान गंवाई है

कल भले हमें उपचार मिले
इतना तब भी पर ज्ञात रहे
अपनी सभ्यता बचानी हो
तो प्रकृति से न खिलवाड़ करें

Monday 4 May 2020

धनी और दानी

कौन कहता है कि जग में धन से बड़ा कुछ भी नहीं
मौज में रहें अमीर सदा ही ये भी तो मुमकिन नहीं
धन नहीं है पास जिनके है घमण्ड उनमें नहीं
अहम का एक मात्र कारण अब कहीं धन तो नहीं

और है अगर धन भी भरा हो कहीं तेरे भंडार में
रहना तू हर दम हमेशा ही निर्धनों के उद्धार में
मिलती नहीं वसिहतों में सदा दौलतें भंडार में
वसीहत में मिलते हैं कभी संस्कार भी संसार में

धन के सत्ता के मद में हों जो उनका क्या उपचार हो
नहीं दिखा पाते अधिक समय तक शान वें संसार को
हो सरल जो और निश्छल और हो दानी बड़ा
यद्यपि ही ईश्वर भी सदा संग ही उनके खड़ा

हो अगर सक्षम तुम इतने और हो धनवान भी
दो तो भूखों को रोटी और रोतों को मुस्कान भी
शान से तुम भी खिलोगे महकोगे हर शाम ही
और इसी व्यक्तित्व को सराहेगा हिंदुस्तान भी