Monday 16 November 2020

हँसता चेहरा

हंसता चेहरा भी बडा बेबाक होता है
खिला रहता है हरदम भले बेचैन होता है

जो दिखाई दे रही है हंसी वो कहाँ सच है
उसी झूटी हंसी में छिपी दुख की परत है

न कुछ कहता है वो बड़ा ही शांत रहता है
खरी कितनी सुनादो सब चुपचाप सहता है

कुछ अंदाज़ है ज़िन्दगी का उसका अलग ही
जो इतना झेलकर भी प्यार से मुस्कुराता है

चमक है वो जो आंखों में गम की नमीं है
वो भी झूटी हंसीं में कहीं दब सी गयी है

इस तरह जीना भी कोई आसान नहीं है
दुखों को झेलकर हँसना सबके बस में नहीं है

ठीक ही है अपने दुखों को क्या बताना 
जब ज़िन्दगी का नाम ही है मुस्कुराना

सीखा है मैंने भी उन्हीं खुद्दार चेहरों से 
खुशियाँ बांटते चलो अपनो से गैरो से

Monday 12 October 2020

महाकाल

अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं

भुजंग है गले में सर पे चन्द्र का स्थान है
सेवादार नन्दी है जटा में गंगा विद्यमान है

दिगम्बरी हैं वस्त्र तन पे भस्म का आरेप है
एक हाथ में त्रिशूल एक में डमरू का फेर है

काल के भी काल वे त्रिकाल महाकाल हैं
ॐ के उपासक हैं और कहाते ओमकार हैं

अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं

सत्य के विमोचक हैं भोला स्वभाव है
क्रुद्ध जो हो जाएं तो महारौद्र विकराल हैं

गृहस्त भी वैरागी भी वे देवों के देव हैं
सृष्टि के नियन्ता हैं वे स्व्यं महादेव हैं

Friday 14 August 2020

जश्न - ए - आज़ादी

सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं , जैसा की आप सभी जानते हैं कि आज हम अपना 74 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं , और यह हमारे लिए गौरवान्वित महसूस करने वाला पल है । इतिहास से सभी परिचित हैं कि किन किन परिस्तिथियों से गुजर कर हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं और कितने बलिदानों के बाद हमे यह आज़ादी मिली । आज इस 74 वे स्वतंत्रता दिवस पर आपके समक्ष अपनी नवीनतम रचना प्रस्तुत करने जा रहा हूँ , अनुमति दीजिये

मिली नहीं आज़ादी यूँही 
है प्राण गंवाए लाखों ने 
कुछ ने झेली गोली फांसी
कुछ ने प्राण गंवाए जेलों में 

भड़क उठी थी जो 57 में
और ज्वलन्त रही 47 तक
उस चिंगारी को मशाल बनाकर
फिर बुझने न दिया था सालों तक

वीरों ने अपने रक्त धार से
फिर क्रांति का आह्वान किया
जो कुछ भी था घट में उनके
सब रक्त वेग में बहा दिया

जोश-ऐ-जुनून फिर उन्होंने
अपनी नस नस में बसा लिया
लिख इंकलाब सीने पर फिर
डट अंग्रेजों से लौहा लिया

फौलाद किया अपने तन को
और पत्थर सा जिगरा किया
मिलती ही रही यातनाएं नित ही
फिर भी इंकलाब का ही नारा दिया

मिली नहीं आज़ादी यूँही
हैं प्राण गंवाए लाखों ने
कुछ ने झेली गोली फांसी
कुछ ने प्राण गंवाए जेलों में

है गर्व मुझे उन वीरों पर
जिसने खुद को आहूत किया
क्रांति की वेदी में प्राण देकर
फिर भारत को आज़ाद किया।।

जय हिंद
वन्देमातरम
इंकलाब जिंदाबाद
भारत माता की जय

Saturday 25 July 2020

कारगिल विजय दिवस

ये पंक्तियां उन वीरों की पूजा के लिए  है , जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।।

                  " कारगिल विजय दिवस"

झुकालो आज शीश अपने , तुम गर्व के एहसास से

शहीदों को दो सलामी , तुम देश प्रेम के एहसास से

नम आंखें हो तुम्हारी , खुशी और श्रद्धा के भाव से

दिन आज वही, जिस दिन लड़े वे अपनी अंतिम सांस  से

मिली विजय एक बार फिर उनके शौर्य और साहस से

फिर एक बार जीत गए हम अपने पड़ोसी सांप से

झुकालो आज शीश अपने , तुम गर्व के एहसास से

शहीदों को दो सलामी , तुम देश प्रेम के एहसास से

दफन हुई जो ज़िंदगियाँ उन बर्फीली सफेद कपास में

अमर हुई वे समस्त जीवन , जन - मन के विश्वास में

याद रखेंगे विजय दिवस को विजय पर्व के एहसास से

झुकालो आज शीश अपने , तुम गर्व के एहसास से

शहीदों को दो सलामी, देश प्रेम के एहसास से।।


Saturday 4 July 2020

संघर्ष वीर

हर बात में आंसू बहाये फिरते हो
क्यों नहीं मुसीबतों से डटकर लड़ते हो
क्या सोच रहे कि कौन आएगा मदद को
क्यों नहीं करते हो तुम सुद्रढ़ स्वयं को

है वीर वही जो हर बाधा से लड़ जाए
संघर्ष करे और बाधाओं से तर जाए
ये धरा भी स्वयं उनकी कायल है
जो लड़ते हैं भले हुए घायल हैं

अरे उठो वीर तुम अब खुद को पहचानो
हर विकट परिस्तिथि से लड़ने की ठानो
एक बार तुम कठोर करो तो मन को
और करो फौलाद तुम स्वयं के तन को

जो ठान लिया की तुझे पार है जाना 
फिर रोक नहीं पाएगा तुझे ज़माना
कर अथक प्रयास भले हो ही विफल तू
एक दिन तो हो ही जाएगा सफल तू

Monday 15 June 2020

"न रख बैर जीवन से प्राणी"

न रख बैर जीवन से प्राणी 
ब्रह्मा ने बड़ी उम्मीदों से बनाया है
माँ की 9 माह की पीड़ा से तू जन्मा
और पिता ने तुझपे अपना सब कुछ लुटाया है
आत्म चिंतन आत्म मंथन हैं जीने के साधन
आत्मदाह से कब किसने उपचार पाया है
जो मेहनत से सफलताओं का शिखर बनाया था
उन सफलताओं पर भी आज प्रश्न चिह्न लगाया है
शोक जताता है ये संसार जो भी वो सब दिखावा है
पर पीर उन माँ बाप की कब कौन समझ पाया है
न रख बैर जीवन से प्राणी 
माँ ने तुझपे अपना जीवन लुटाया है
वो न सह सकेगी जो जानेगी सत्य
तुझसे अधिक कब उसको संसार भाया है

तरुण त्यागी

Saturday 6 June 2020

"गीत नहीं झनकार के"

गीत नहीं झनकार के न गौरी के श्रृंगार के
गीत नहीं मल्हार के न बासन्ति प्यार के
गीत हैं ये हुंकार के सैनिक की ललकार के
गीत हैं ये दुलार के माँ भारती के उपकार के

गीत तुम्हें जो सुनने हैं वो मैं नहीं सुना सकता हूँ
प्रेम मिलन के गीत तुम्हें हरगिज़ भी नहीं सुना सकता हूँ
कलम जो हाथों में है उसको तलवार बनाये फिरता हूँ
माँ की यशगाथा से भिन्न कुछ भी नहीं सुना सकता हूँ

मैं कविता लेखन करता हूँ भारत माँ की ममता का
मैं कविता लेखन करता हूँ इसके लालों की क्षमता का
बर्फीली चौटी पर भी जो लहू आग से खौलेगा
उन सिंहों की तारीफों में ये तरुण सदा ही बोलेगा

प्रेम अगर करना ही है तो प्रेम वतन से कर लेना
भारत माँ की सेवा में तुम ये जीवन अर्पण कर देना
जीवन के अंतिम क्षण तक भी कभी मलाल नहीं होगा
और तुम्हारी नीयत पर भी कभी कोई सवाल नहीं होगा

राष्ट्रभक्त हूँ राष्ट्रहित की बात बताने निकला हूँ
माँ भारती के उपकारों का कुछ मौल चुकाने निकला हूँ
सोये रक्त में फिरसे मैं  संचार कराने निकला हूँ
हर भारतीय की रग रग में मैं राष्ट्र बसाने निकल हूँ


Friday 29 May 2020

मायूस चेहरे

सभी मायूस हैं और सभी व्यथित से चेहरे हैं
मानो आज सबके ऊपर यमदूतों के पहरे हैं
अभी तक हमने किये आघात थे पंचभूतों पर
पर अनभिज्ञ थे कि प्रकृति के प्रतिकार गहरे हैं

अभी भी मानलो सत्य करो बदलाव जीने का
सँजोलो प्रकृति के घटकों को करो संचार जीवन का
जो न सम्भले अब भी इन सब से सीखकर कोई
तो भले खोजलो मंगल ही मिलेगा अंश मात्र जीवन का

कहीं वन में अनल है और कहीं भूचाल है जल में
मिटादि कितनी ही सम्पदा बस एक ही पल में
एक महामारी से तो हम अभी तक लड़ नहीं पाए
नई हो रही समस्याएं खड़ी हर क्षण हर पल में


Tuesday 19 May 2020

पृथ्वीराज चौहान

हिंसा का खेल हम कभी खेला नहीं करते थे
गौरी जैसे शत्रु को भी जीवित छोड़ दिया करते थे
100 भूलें तो क्षमा कृष्ण ने शिशुपाल की थी 
और 17 बार चौहान ने गौरी को प्राणों की भिक्षा दी थी

पर इतिहास साक्षी है कभी छल से कौन बच पाया है
यहां वीरता पर हर बारी अपनों ने घात लगाया है
फौड चौहान की आंखें गौरी बड़ा हर्षाया था
पर चौहान की हिम्मत को वो अब तक तोड़ न पाया था

थे धनुरश्रेष्ठ चौहान यह किसी से कहां छिपा था
गौरी ने अपनी मृत्यु को आमन्त्रित स्वयं किया था
ज्यों ही गौरी ने बोला करतब दिखाओ चौहान
शब्द भेदी बाण से चौहान ने भेद दियो सुलतान

Saturday 16 May 2020

टिक टॉक के बीमार

कोई सोलह वर्ष की आयु में कुछ सपने सजाये बैठे हैं
फौजी बनकर सरहद पर जाने की आस लगाये बैठे हैं
जी तोड़ कोशिश महनत करके वे लोहे से तैयार हैं
वहीं एक और कुछ नौजवान  टिक टॉक से बीमार हैं

कोरोना से तो लड़ ही लेंगे इसमें कोई भेद नहीं
पर नस्लों को डूबे देखूं तो कैसे कहदूँ मुझे खेद नहीं
खेद भी है और डर भी भीतर के अब भी जो ये ना जागे
तो इनका भविष्य बनाने को क्यों कोई इनके पीछे भागे

जन नायक कहते हैं हमको आत्मनिर्भर बनना होगा
पर मैं  कहता हूं पहले राष्ट्र को समझदार बनना होगा
कोई आकर सही गलत का भेद हमें क्यों बतलाये
क्यों न स्वयं नव पीढ़ी भारत को उचित मार्ग पर ले जाये

कला और कौशल दोनो का मैं भी करता सम्मान हूँ
पर टिक टॉक वाली कौम से मैं थोड़ा हैरान हूँ
है लग्न तुममे गाने की या अभिनय का है कौशल
तो टिक टॉक से बाहर आकर करो अपना उद्देश्य सफल

Saturday 9 May 2020

प्राकृतिक विध्वंस

वर्षों से जो था हो न सका
वह सब सम्भव हो पाया है
खुद को संरक्षित करने को 
प्रकृति ने विध्वंस मचाया है

थे चीख उठे धरती - अम्बर
थे चीख उठे भूतल - सागर
जो मलिन हुए थे वर्षों तक 
हैं पुनः खिले नव जीवन पाकर

यह भी हम सब न भूलें 
की आज समय जो आया है
कितना घातक होता परिणाम 
प्रकृति ने हमें बताया है

ब्रम्हा ने सृष्टि रचना की
और दिया व्याप्त भोजन साधन
फिर मानुस भूख मिटाने को
क्यों करता जीवों का भक्षण

जब जब भी मनुष्य जाति ने
खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखलाया है
प्रकृति ने घमण्ड मिटाने को 
तब तब विध्वंश मचाया है

यह आज विपद जो आयी है
चहुँ और शांति सी छाई है
इस विपदा से लड़ते लड़ते 
लाखों ने जान गंवाई है

कल भले हमें उपचार मिले
इतना तब भी पर ज्ञात रहे
अपनी सभ्यता बचानी हो
तो प्रकृति से न खिलवाड़ करें

Monday 4 May 2020

धनी और दानी

कौन कहता है कि जग में धन से बड़ा कुछ भी नहीं
मौज में रहें अमीर सदा ही ये भी तो मुमकिन नहीं
धन नहीं है पास जिनके है घमण्ड उनमें नहीं
अहम का एक मात्र कारण अब कहीं धन तो नहीं

और है अगर धन भी भरा हो कहीं तेरे भंडार में
रहना तू हर दम हमेशा ही निर्धनों के उद्धार में
मिलती नहीं वसिहतों में सदा दौलतें भंडार में
वसीहत में मिलते हैं कभी संस्कार भी संसार में

धन के सत्ता के मद में हों जो उनका क्या उपचार हो
नहीं दिखा पाते अधिक समय तक शान वें संसार को
हो सरल जो और निश्छल और हो दानी बड़ा
यद्यपि ही ईश्वर भी सदा संग ही उनके खड़ा

हो अगर सक्षम तुम इतने और हो धनवान भी
दो तो भूखों को रोटी और रोतों को मुस्कान भी
शान से तुम भी खिलोगे महकोगे हर शाम ही
और इसी व्यक्तित्व को सराहेगा हिंदुस्तान भी

Tuesday 14 April 2020

देश के जयचन्द

सिपाही के हाथ जब सरेआम काटे जाते हैं
उन विद्रोहक भीड़ में मुझे सब जयचन्द नज़र आते हैं
अस्मत मेरी माटी की कोई बाहरी क्या कुचलेगा
पर आम्भिक जैसे देश द्रोहियों से कब ये देश उभरेगा

ये कोरोना का खेल भी भारत मे यूँ न चला होता
जो आम्भिक औ जयचंदों ने यूँ हमको न छला होता
समझदार को इशारा बहुत है मैं उनको समझाऊं क्या
सूखे वृक्षों की शाखों को भला और हिलाऊ क्या

फिर भी कवि का धर्म यही है सत्य से कभी न मुँह फेरे
कलम धार के तीखे वार से शत्रु को शब्दों से घेरे
जो लगे देश सेवा में नित है उनपर यदि आघात होगा
ऐसे नीच द्रोहियों के सम्मुख खड़ा एक राणा प्रताप होगा

Monday 30 March 2020

क्यों नही सीखते इतिहास से

क्यों नही सीखते इतिहास से , सिया राम लखन वनवास से
मारीच को रावण ने बुलवाया, जगदम्बा को हरने का बताया
ले आज्ञा महाराज की , युक्ति बनाई सिया को हरषाने की
मारीच ने फिर माया रची , स्वर्ण मृग बन वन में गति करी
देख उसे सिया मन हर्षाया , फौरन प्रभु को पीछे दौड़ाया
लक्ष्मण समझ रहे थे माया , कहा उन्होंने रुको ओ भ्राता
प्रभु भी कुछ भी समझ न पाए , मृग के पीछे वन में आये
प्रभु ने ज्यों ही तीर चलाया , मारीच ने फिर लक्ष्मण चिल्लाया
सुनके सिया का मन घबराया , लक्ष्मण को आदेश थमाया
उठाके अपना तीर कमान , तुरन्त करो वन को प्रस्थान
लक्ष्मण ने फिर तीर लिया , मन को तनिक गम्भीर किया
माता की रक्षा की खातिर , लक्ष्मण ने रेखा खींच दिया
कुछ भी हो बस सब्र रखियेगा , कुटीर से बाहर न पग रखिएगा
माता ने रेखा पार किया , फिर जो भी हुआ इतिहास हुआ
मैं आज तुम्हे बतलाता हूं , इतिहास याद दिलाता हूं
घर में चाहे जो भी करना , दहलीज़ के बाहर न कदम धरना
जब जब वक्त बुरा आया है , कहा अधिक ठहर वह पाया है
मैं फिर से वही दोहराता हूँ , इतिहास को याद कराता हूँ
क्यों नही सीखते इतिहास से , सिया राम लखन वनवास से।।

Sunday 22 March 2020

माँ का आँचल

कैसी अजब है ये बात कि संताने समझने लगती हैं ,
बुजुर्गो को खुद पर बोझ।
एक  बात समझलो ऐ नादानों,
इस जीवन में हो तुम उनके आलोक।
बुलंदियों को छूने की चाह मन में आई थी,
साथ दिया उस माता ने जो आज तुझे न
भाई थी।
जब काल तेरा आएगा ,
न रोएगी दुनिया तुझ पर।
वही माँ फिर भी तुझे,
अपने आँचल में सुलयेगी।।

                                   
धन्यवाद  (तरुण त्यागी)