अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं
भुजंग है गले में सर पे चन्द्र का स्थान है
सेवादार नन्दी है जटा में गंगा विद्यमान है
दिगम्बरी हैं वस्त्र तन पे भस्म का आरेप है
एक हाथ में त्रिशूल एक में डमरू का फेर है
काल के भी काल वे त्रिकाल महाकाल हैं
ॐ के उपासक हैं और कहाते ओमकार हैं
अनन्त हैं वे आदिकाल से ही विद्यमान हैं
प्राणों में, पाषाण में, शून्य में विद्यमान हैं
सत्य के विमोचक हैं भोला स्वभाव है
क्रुद्ध जो हो जाएं तो महारौद्र विकराल हैं
गृहस्त भी वैरागी भी वे देवों के देव हैं
सृष्टि के नियन्ता हैं वे स्व्यं महादेव हैं