Saturday 21 July 2018

फरियाद

कुछ अलग अंदाज था
जो वक्त की न की कदर
आज बैठा हूँ अकेले
खाये ठोकर इस कदर

सर पकड़कर रो तड़पकर
बैठा हूँ मैं अब इसकदर
जैसे मांझी को न आये
साहिल-ऐ-कश्ती नज़र

अब एक फरियाद मेरी
सुनले मालिक आखरी
दे मुझे तू हौसला बस
यही फरियाद है आखरी

तेरा साया साथ हो तो
वो मुकाम मिल जाएगा
जग में कर सके न जिसकी
कोई भी बराबरी

साथ हो कोई मेरे
अब न है इसकी कामना
मेरे मालिक तू ही अब
बस मेरा हाथ थामना

तेरे साये में रहूँ
जब तक  भी देह में प्राण हैं
तेरी रहमतों से तो मालिक
पाषाण में भी प्राण हैं

है वचन तुझसे मेरा
हर कर्म करूँगा स्तय से
न भी हो कोई साथ मेरे
तब भी लड़ूंगा असत्य से

करूँगा अब हर कर्म को
मैं सच्चे निष्ठा भाव से
डिगेंगे न अब पग मेरे
सद्भाव से सद्मार्ग से।।
 
                                                   धन्यवाद
                                                ' तरुण त्यागी '