Monday 16 November 2020

हँसता चेहरा

हंसता चेहरा भी बडा बेबाक होता है
खिला रहता है हरदम भले बेचैन होता है

जो दिखाई दे रही है हंसी वो कहाँ सच है
उसी झूटी हंसी में छिपी दुख की परत है

न कुछ कहता है वो बड़ा ही शांत रहता है
खरी कितनी सुनादो सब चुपचाप सहता है

कुछ अंदाज़ है ज़िन्दगी का उसका अलग ही
जो इतना झेलकर भी प्यार से मुस्कुराता है

चमक है वो जो आंखों में गम की नमीं है
वो भी झूटी हंसीं में कहीं दब सी गयी है

इस तरह जीना भी कोई आसान नहीं है
दुखों को झेलकर हँसना सबके बस में नहीं है

ठीक ही है अपने दुखों को क्या बताना 
जब ज़िन्दगी का नाम ही है मुस्कुराना

सीखा है मैंने भी उन्हीं खुद्दार चेहरों से 
खुशियाँ बांटते चलो अपनो से गैरो से