Tuesday 14 April 2020

देश के जयचन्द

सिपाही के हाथ जब सरेआम काटे जाते हैं
उन विद्रोहक भीड़ में मुझे सब जयचन्द नज़र आते हैं
अस्मत मेरी माटी की कोई बाहरी क्या कुचलेगा
पर आम्भिक जैसे देश द्रोहियों से कब ये देश उभरेगा

ये कोरोना का खेल भी भारत मे यूँ न चला होता
जो आम्भिक औ जयचंदों ने यूँ हमको न छला होता
समझदार को इशारा बहुत है मैं उनको समझाऊं क्या
सूखे वृक्षों की शाखों को भला और हिलाऊ क्या

फिर भी कवि का धर्म यही है सत्य से कभी न मुँह फेरे
कलम धार के तीखे वार से शत्रु को शब्दों से घेरे
जो लगे देश सेवा में नित है उनपर यदि आघात होगा
ऐसे नीच द्रोहियों के सम्मुख खड़ा एक राणा प्रताप होगा