गुरुभक्ति की बात कहूँ
या कहूँ धनुर्धर की ख्याति
नारी का सम्मान कहूँ
या दानवीरता की बातें
दयावान था चरित्र इतना
की कोई माँगे न डरता था
माँगले चाहे जो भी उससे
वह हर आशा पूरी करता था
ब्राह्मण , क्षत्रिय , शूद्र , वैश्य
सबको उसने दान दिया
जब इंद्र पधारे दान माँगने
उनको भी सम्मान दिया
था अभेद्य सा तन जिसका
अब वह सबके समान हुआ
बिना कवच और शस्त्रों के भी
वो योद्धा सबसे महान हुआ
पूरा जीवन श्रापित था उसका
पर किंचित वह न घबराया
अपने कौशल और पराक्रम से
वह वीर मृत्युंजय कहलाया
दिनकर का था तेज वह
और अधिरथ का धैर्य पाया
था वह ज्येष्ठ कौन्तेय किन्तु
सदा राधेय कर्ण ही कहलाय
© तरुण त्यागी