कैसी अजब है ये बात कि संताने समझने लगती हैं ,
बुजुर्गो को खुद पर बोझ।
एक बात समझलो ऐ नादानों,
इस जीवन में हो तुम उनके आलोक।
बुलंदियों को छूने की चाह मन में आई थी,
साथ दिया उस माता ने जो आज तुझे न
भाई थी।
जब काल तेरा आएगा ,
न रोएगी दुनिया तुझ पर।
वही माँ फिर भी तुझे,
अपने आँचल में सुलयेगी।।
धन्यवाद (तरुण त्यागी)
सुन्दर बात रचना के माध्यम से
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