उन विद्रोहक भीड़ में मुझे सब जयचन्द नज़र आते हैं
अस्मत मेरी माटी की कोई बाहरी क्या कुचलेगा
पर आम्भिक जैसे देश द्रोहियों से कब ये देश उभरेगा
ये कोरोना का खेल भी भारत मे यूँ न चला होता
जो आम्भिक औ जयचंदों ने यूँ हमको न छला होता
समझदार को इशारा बहुत है मैं उनको समझाऊं क्या
सूखे वृक्षों की शाखों को भला और हिलाऊ क्या
फिर भी कवि का धर्म यही है सत्य से कभी न मुँह फेरे
कलम धार के तीखे वार से शत्रु को शब्दों से घेरे
जो लगे देश सेवा में नित है उनपर यदि आघात होगा
ऐसे नीच द्रोहियों के सम्मुख खड़ा एक राणा प्रताप होगा
Supper Tarun ji
ReplyDeleteBhut Dhanyawaad🙏
DeleteSo well written Tyagi sabh!!
ReplyDeleteDhanyawaad Sabh
DeleteNice Tarun.. Well Done...
ReplyDeleteThank you🙏
DeleteThanks Bhai
ReplyDeleteKeep it up
ReplyDeletewoww.. lines🙏
ReplyDeleteReally appreciated ✌
ReplyDeleteThank you 🙏🙏
ReplyDeleteTyagi ji dil jeet liya aapne toh ❤❤
ReplyDeleteDhanyawad Sabh🙏🙏
DeleteBilkul satya vachan tyagi ji��❤️
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार🙏🙏
DeleteReally felt that!!🔥❣️
ReplyDelete