हंसता चेहरा भी बडा बेबाक होता है
खिला रहता है हरदम भले बेचैन होता है
जो दिखाई दे रही है हंसी वो कहाँ सच है
उसी झूटी हंसी में छिपी दुख की परत है
न कुछ कहता है वो बड़ा ही शांत रहता है
खरी कितनी सुनादो सब चुपचाप सहता है
कुछ अंदाज़ है ज़िन्दगी का उसका अलग ही
जो इतना झेलकर भी प्यार से मुस्कुराता है
चमक है वो जो आंखों में गम की नमीं है
वो भी झूटी हंसीं में कहीं दब सी गयी है
इस तरह जीना भी कोई आसान नहीं है
दुखों को झेलकर हँसना सबके बस में नहीं है
ठीक ही है अपने दुखों को क्या बताना
जब ज़िन्दगी का नाम ही है मुस्कुराना
सीखा है मैंने भी उन्हीं खुद्दार चेहरों से
खुशियाँ बांटते चलो अपनो से गैरो से
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