Saturday 6 June 2020

"गीत नहीं झनकार के"

गीत नहीं झनकार के न गौरी के श्रृंगार के
गीत नहीं मल्हार के न बासन्ति प्यार के
गीत हैं ये हुंकार के सैनिक की ललकार के
गीत हैं ये दुलार के माँ भारती के उपकार के

गीत तुम्हें जो सुनने हैं वो मैं नहीं सुना सकता हूँ
प्रेम मिलन के गीत तुम्हें हरगिज़ भी नहीं सुना सकता हूँ
कलम जो हाथों में है उसको तलवार बनाये फिरता हूँ
माँ की यशगाथा से भिन्न कुछ भी नहीं सुना सकता हूँ

मैं कविता लेखन करता हूँ भारत माँ की ममता का
मैं कविता लेखन करता हूँ इसके लालों की क्षमता का
बर्फीली चौटी पर भी जो लहू आग से खौलेगा
उन सिंहों की तारीफों में ये तरुण सदा ही बोलेगा

प्रेम अगर करना ही है तो प्रेम वतन से कर लेना
भारत माँ की सेवा में तुम ये जीवन अर्पण कर देना
जीवन के अंतिम क्षण तक भी कभी मलाल नहीं होगा
और तुम्हारी नीयत पर भी कभी कोई सवाल नहीं होगा

राष्ट्रभक्त हूँ राष्ट्रहित की बात बताने निकला हूँ
माँ भारती के उपकारों का कुछ मौल चुकाने निकला हूँ
सोये रक्त में फिरसे मैं  संचार कराने निकला हूँ
हर भारतीय की रग रग में मैं राष्ट्र बसाने निकल हूँ


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