Tuesday 19 May 2020

पृथ्वीराज चौहान

हिंसा का खेल हम कभी खेला नहीं करते थे
गौरी जैसे शत्रु को भी जीवित छोड़ दिया करते थे
100 भूलें तो क्षमा कृष्ण ने शिशुपाल की थी 
और 17 बार चौहान ने गौरी को प्राणों की भिक्षा दी थी

पर इतिहास साक्षी है कभी छल से कौन बच पाया है
यहां वीरता पर हर बारी अपनों ने घात लगाया है
फौड चौहान की आंखें गौरी बड़ा हर्षाया था
पर चौहान की हिम्मत को वो अब तक तोड़ न पाया था

थे धनुरश्रेष्ठ चौहान यह किसी से कहां छिपा था
गौरी ने अपनी मृत्यु को आमन्त्रित स्वयं किया था
ज्यों ही गौरी ने बोला करतब दिखाओ चौहान
शब्द भेदी बाण से चौहान ने भेद दियो सुलतान

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