Saturday 9 May 2020

प्राकृतिक विध्वंस

वर्षों से जो था हो न सका
वह सब सम्भव हो पाया है
खुद को संरक्षित करने को 
प्रकृति ने विध्वंस मचाया है

थे चीख उठे धरती - अम्बर
थे चीख उठे भूतल - सागर
जो मलिन हुए थे वर्षों तक 
हैं पुनः खिले नव जीवन पाकर

यह भी हम सब न भूलें 
की आज समय जो आया है
कितना घातक होता परिणाम 
प्रकृति ने हमें बताया है

ब्रम्हा ने सृष्टि रचना की
और दिया व्याप्त भोजन साधन
फिर मानुस भूख मिटाने को
क्यों करता जीवों का भक्षण

जब जब भी मनुष्य जाति ने
खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखलाया है
प्रकृति ने घमण्ड मिटाने को 
तब तब विध्वंश मचाया है

यह आज विपद जो आयी है
चहुँ और शांति सी छाई है
इस विपदा से लड़ते लड़ते 
लाखों ने जान गंवाई है

कल भले हमें उपचार मिले
इतना तब भी पर ज्ञात रहे
अपनी सभ्यता बचानी हो
तो प्रकृति से न खिलवाड़ करें

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